चौकीदार के घर चोरी

अचानक रात में मोबाइल की घंटी बज उठी। मैं चौंक कर उठ गया। डर भी गया था। हमारी पीढ़ी के लिए रात में फोन का बजना यानी बुरी खबर का आना ही होता हैं। मन में यही बात बैठी हैं। हम लोग तो बड़े ही यह सब देख देख कर हुए। इन दिनों तो टेलीग्राम बंद हो गए अन्यथा दिनदहाड़े वे भी बड़े डराते थे। आज की पीढ़ी के लिए वर्क फ्रॉम होम और आउटसोर्सिंग के कारण 24 घंटे में कभी भी कॉल आए- वह उनके ऊपर वाले का कॉल होगा मगर उस ऊपर वाले से संबंधित नहीं होगा, इस कारण डराता नहीं। हां, कभी-कभी better.com के विशाल गर्ग जैसे लोग झटका दे जाते हैं। जो 900 लोग उनके कॉल पर मीटिंग में उनका चेहरा देख रहे थे, उन के लिए विशाल चेहरा 'मनहूस' जैसा सिद्ध हुआ। अब गर्ग साहब कोई अपने साहेब जैसे प्रभावशाली तो थे नहीं कि जब चाहे चौंकाने वाली घोषणाएं करके चले जाए और लोग सिर आंखों पर उनकी बात को ले लें। दो दिन के विरोध, खिंचाई के बाद बेचारे गर्ग साहब की छुट्टी हो गई।

फोन की घंटी सुनकर श्रीमती जी ने पूछा- "क्या हुआ?"

मैंने कहा-"देखता हूं।" स्क्रीन पर देखा। उनका नाम था। डरते डरते मैंने कॉल अटेंड की। दूसरी ओर से आवाज आई-"सुन रहे हो?"

मैंने 'हूं' किया और बोला-"इतनी रात को क्या हो गया जो फोन किया?"

"मैंने कुछ नहीं किया भाई। जो किया साहेब ने किया।"- वे बोले।

"साहेब तो रात को आठ-नौ बजे 'भाइयों बहनों' करते थे। जब से बदनाम हुए तो वे भी सवेरे करने लगे है, इतनी रात को नहीं।"- मैंने जवाब दिया।

"कभी अच्छा भी सोचा करो। इस बार उन्होंने बिटकॉइन को लीगल कर दिया हैं। सभी के खातों में थोड़े थोड़े बिटकॉइन्स भी डाल रहे हैं।"- उन्होंने कहा।

"कोई डरावना सपना देखा होगा तुमने। सो जाओ।"- मैं बोला।

"यार एक बिटकॉइन कितने रुपए का होता है?"- उन्होंने बिना मेरी बात पर ध्यान दिये सवाल कर दिया।

"शायद 65 हजार का था, गिरकर 48-49 हजार का रह गया। तुम ऐसी खबरें लाते कहां से हो?"- मैंने सवाल किया।

"साहेब के ब्लूटिक वाले वेरीफाइड टि्वटर अकाउंट से किया गया ट्वीट देख लो। इतना 'पप्पू' होना भी ठीक नहीं।"- वे बोले।

मैंने ट्विटर ऐप खोला। ढूंढा। कुछ मिला नहीं। ना मुझे पहले के पन्द्रह लाख रुपए का लालच था और ना अभी आने वाले पैसे का। इसलिए मैं गुणा भाग करके हिसाब लगाने के मूड में न था। मोबाइल रखकर, लाइट बंद की। बिस्तर में घुसने वाला था कि उनका कॉल फिर से आ गया। "क्या हो गया भाई! आभासी पैसा, खाते में किस तरीके से आएगा इसका मुझे कोई आभास नहीं इसलिए मुझसे तो कुछ पूछना मत।"- उनके बोलने से पहले ही मैं बोल उठा।

"क्या हर बार जल्दी में रहते हो! बात तो पूरी सुन लो। साहेब का अकाउंट 'कम्प्रोमाइजिंग पोजीशन' में आ गया था। ट्विटर पर शिकायत लिखवाई तब जाकर मुक्ति मिली। बड़े लोगों की शिकायत पर सुनवाई जल्दी हो जाती है वरना लोगों की तो जिंदगी निकल जाती है।"- वे बोले।

"ओहो! कितने खतरों का सामना करना पड़ रहा है, साहेब को। क्या दिन-रात चौकीदार ही करते रहे? दो चार घंटे सोए भी नहीं।"- मैं बोला।

"छोड़ो यार, लफ्फाजी, जुमलेबाजी बहुत कर ली। डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाले, आने वाले खतरों से खुद को सुरक्षित नहीं रख पा रहे है तो आम लोगों का क्या बचाव करेंगे !"- बौखलाहट उनके शब्दों में झलक रही थी। उनकी बौखलाहट से मुझे पंच परमेश्वरो के 'सरपंच' की पुस्तक में अयोध्या मामले के फैसले के बाद जश्न मनाते चित्र के नीचे 'सेलिब्रेशन' शब्द को लेकर पूछे गए सवाल पर सरपंच के बौखलाहट भरे उत्तर की याद आ गई। गहराती रात में, मैं ज्यादा सोचने के मूड में नहीं था। इसलिए मैंने उनसे कहा-"उत्तेजित मत हो। लालच मत करो। समय पर सो जाया करो। और आगे से इस मामले में मुझे फोन मत करना।"

कह कर सरकार की तरह मामले को ठंडे बस्ते में रख कर मैं बिस्तर में घुस गया।

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